Monday, May 30, 2011

एक आशीर्वाद (Ek Ashirvad) - दुष्यंत कुमार (Dushyant Kumar)

जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
गाऐं।
हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें
उँगली जलायें।
अपने पाँव पर खड़े हों।
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।

Thursday, May 12, 2011

कदम कदम बढ़ाये जा (Kadam Kadam Badhaye Ja) - कैप्टन राम सिंह (Captain Ram Singh)

कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा

तू शेर-ए-हिन्द आगे बढ़
मरने से तू कभी न डर
उड़ा के दुश्मनों का सर
जोश-ए-वतन बढ़ाये जा

कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा

हिम्मत तेरी बढ़ती रहे
खुदा तेरी सुनता रहे
जो सामने तेरे खड़े
तू खाक में मिलाये जा

कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा

चलो दिल्ली पुकार के
ग़म-ए-निशाँ संभाल के
लाल क़िले पे गाड़ के
लहराये जा लहराये जा

कदम कदम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा

Wednesday, May 11, 2011

जंगल की याद मुझे मत दिलाओ (Jungle Ki Yaad Mujhe Mat Dilao) - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwardayal Saxena)

कुछ धुआँ

कुछ लपटें

कुछ कोयले

कुछ राख छोड़ता

चूल्हे में लकड़ी की तरह मैं जल रहा हूँ,

मुझे जंगल की याद मत दिलाओ!


हरे —भरे जंगल की

जिसमें मैं सम्पूर्ण खड़ा था

चिड़ियाँ मुझ पर बैठ चहचहाती थीं

धामिन मुझ से लिपटी रहती थी

और गुलदार उछलकर मुझ पर बैठ जाता था.

जँगल की याद

अब उन कुल्हाड़ियों की याद रह गयी है

जो मुझ पर चली थीं

उन आरों की जिन्होंने

मेरे टुकड़े—टुकड़े किये थे

मेरी सम्पूर्णता मुझसे छीन ली थी !

चूल्हे में

लकड़ी की तरह अब मैं जल रहा हूँ

बिना यह जाने कि जो हाँडी चढ़ी है

उसकी खुदबुद झूठी है

या उससे किसी का पेट भरेगा

आत्मा तृप्त होगी,

बिना यह जाने

कि जो चेहरे मेरे सामने हैं

वे मेरी आँच से

तमतमा रहे हैं

या गुस्से से,

वे मुझे उठा कर् चल पड़ेंगे

या मुझ पर पानी डाल सो जायेंगे.

मुझे जंगल की याद मत दिलाओ!

एक—एक चिनगारी

झरती पत्तियाँ हैं

जिनसे अब भी मैं चूम लेना चाहता हूँ

इस धरती को

जिसमें मेरी जड़ें थीं!

Tuesday, May 10, 2011

एक भी आँसू न कर बेकार (Ek Bhi Aansoo Na Kar Bekar) - रामावतार त्यागी (Ram Avtar Tyagi),

एक भी आँसू न कर बेकार
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!

पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है
यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है
और जिस के पास देने को न कुछ भी
एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है

कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
जाने देवता को कौनसा भा जाय!

चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ
पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं

हर छलकते अश्रु को कर प्यार
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!

व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
काम अपने पाँव ही आते सफर में
वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा
जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में

हर लहर का कर प्रणय स्वीकार
जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!

Monday, May 9, 2011

सूरज को नही डूबने दूंगा (Suraj Ko Nahin Doobne Doonga) - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwardayal Saxena)

अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा।

देखो मैने कंधे चौड़े कर लिये हैं

मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं

और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर

खड़ा होना मैने सीख लिया है।


घबराओ मत

मै क्षितिज पर जा रहा हूँ।

सूरज ठीक जब पहाडी से लुढ़कने लगेगा

मै कंधे अड़ा दूंगा

देखना वह वहीं ठहरा होगा।


अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा।

मैने सुना है उसके रथ मे तुम हो

तुम्हें मै उतार लाना चाहता हूं

तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो

तुम जो साहस की मूर्ति हो

तुम जो धरती का सुख हो

तुम जो कालातीत प्यार हो

तुम जो मेरी धमनी का प्रवाह हो

तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो

तुम्हें मै उस रथ से उतार लाना चाहता हूं।


रथ के घोड़े

आग उगलते रहें

अब पहिये टस से मस नही होंगे

मैने अपने कंधे चौड़े कर लिये है।


कौन रोकेगा तुम्हें

मैने धरती बड़ी कर ली है

अन्न की सुनहरी बालियों से

मै तुम्हें सजाऊँगा

मैने सीना खोल लिया है

प्यार के गीतो मे मै तुम्हे गाऊंगा

मैने दृष्टि बड़ी कर ली है

हर आँखों में तुम्हें सपनों सा फहराऊंगा।


सूरज जायेगा भी तो कहाँ

उसे यहीं रहना होगा

यहीं हमारी सांसों मे

हमारी रगों मे

हमारे संकल्पों मे हमारे रतजगों मे

तुम उदास मत होओ

अब मै किसी भी सूरज को

नही डूबने दूंगा।

Sunday, May 8, 2011

पतवार (Patvaar) - शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (Shivmangal Singh 'Suman'),

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।

आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज ह्रदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।

लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।

यह असीम, निज सीमा जाने
सागर भी तो यह पहचाने
मिट्टी के पुतले मानव ने
कभी ना मानी हार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।

सागर की अपनी क्षमता है
पर माँझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।

Friday, May 6, 2011

कलम, आज उनकी जय बोल (Kalam Aaj Unki Jai Bol) - रामधारी सिंह 'दिनकर' (Ramdhari Singh 'Dinkar'),

जला अस्थियां बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल

जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल

पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल

अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल