Monday, May 9, 2011

सूरज को नही डूबने दूंगा (Suraj Ko Nahin Doobne Doonga) - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwardayal Saxena)

अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा।

देखो मैने कंधे चौड़े कर लिये हैं

मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं

और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर

खड़ा होना मैने सीख लिया है।


घबराओ मत

मै क्षितिज पर जा रहा हूँ।

सूरज ठीक जब पहाडी से लुढ़कने लगेगा

मै कंधे अड़ा दूंगा

देखना वह वहीं ठहरा होगा।


अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा।

मैने सुना है उसके रथ मे तुम हो

तुम्हें मै उतार लाना चाहता हूं

तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो

तुम जो साहस की मूर्ति हो

तुम जो धरती का सुख हो

तुम जो कालातीत प्यार हो

तुम जो मेरी धमनी का प्रवाह हो

तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो

तुम्हें मै उस रथ से उतार लाना चाहता हूं।


रथ के घोड़े

आग उगलते रहें

अब पहिये टस से मस नही होंगे

मैने अपने कंधे चौड़े कर लिये है।


कौन रोकेगा तुम्हें

मैने धरती बड़ी कर ली है

अन्न की सुनहरी बालियों से

मै तुम्हें सजाऊँगा

मैने सीना खोल लिया है

प्यार के गीतो मे मै तुम्हे गाऊंगा

मैने दृष्टि बड़ी कर ली है

हर आँखों में तुम्हें सपनों सा फहराऊंगा।


सूरज जायेगा भी तो कहाँ

उसे यहीं रहना होगा

यहीं हमारी सांसों मे

हमारी रगों मे

हमारे संकल्पों मे हमारे रतजगों मे

तुम उदास मत होओ

अब मै किसी भी सूरज को

नही डूबने दूंगा।

1 comment: