Thursday, October 14, 2010

हैफ हम जिसपे की तैयार थे मर जाने को (Haif Hum Jispe Ki Tayaar The Mar Jane Ko) - राम प्रसाद 'बिस्मिल' (Ram Prasad 'Bismil')

हैफ हम जिसपे की तैयार थे मर जाने को
जीते जी हमने छुड़ाया उसी कशाने को
क्या ना था और बहाना कोई तडपाने को
आसमां क्या यही बाकी था सितम ढाने को
लाके गुरबत में जो रखा हमें तरसाने को

फिर ना गुलशन में हमें लायेगा शायद कभी
याद आयेगा किसे ये दिल-ऐ-नाशाद कभी
क्यों सुनेगा तु हमारी कोई फरियाद कभी
हम भी इस बाग में थे कैद से आजाद कभी
अब तो काहे को मिलेगी ये हवा खाने को

दिल फिदा करते हैं क़ुरबान जिगर करते हैं
पास जो कुछ है वो माता की नज़र करते हैं
खाना वीरान कहाँ देखिए घर करते हैं
खुश रहो अहल-ए-वतन, हम तो सफ़र करते हैं
जाके आबाद करेंगे किसी वीराने को

ना मयस्सर हुआ राहत से कभिइ मेल हमें
जान पर खेल के भाया ना कोइ खेल हमें
एक दिन क्या भी ना मंज़ूर हुआ बेल हमें
याद आएगा अलिपुर का बहुत जेल हमें
लोग तो भूल गये होंगे उस अफ़साने को

अंडमान खाक तेरी क्यूँ ना हो दिल में नाज़ां
छके चरणों को जो पिंगले के हुई है ज़ीशान
मरतबा इतना बढ़े तेरी भी तक़दीर कहाँ
आते आते जो रहे ‘बाल तिलक’ भी मेहमां
‘मंडाले’ को ही यह आइज़ाज़ मिला पाने को

बात तो जब है की इस बात की ज़िद्दे थानें
देश के वास्ते क़ुरबान करें हम जानें
लाख समझाए कोइ, उसकी ना हरगिज़ मानें
बहते हुए ख़ून में अपना ना ग़रेबान सानें
नासेहा, आग लगे इस तेरे समझाने को

अपनी क़िस्मत में आज़ाल से ही सितम रक्खा था
रंज रक्खा था, मेहान रक्खा था, गम रक्खा था
किसको परवाह थी और किस्में ये दम रक्खा था
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को

हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर
हम भी माँ बाप के पाले थे, बड़े दुःख सह कर
वक़्त-ए-रुख्ह्सत उन्हें इतना भी ना आए कह कर
गोद में आँसू जो टपके कभी रुख्ह से बह कर
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को

देश सेवा का ही बहता है लहु नस-नस में
हम तो खा बैंटे हैं चित्तोड़ के गढ़ की कसमें
सरफरोशी की अदा होती हैं यों ही रसमें
भाले-ऐ-खंजर से गले मिलाते हैं सब आपस में
बहानों, तैयार चिता में हो जल जाने को

अब तो हम डाल चुके अपने गले में झोली
एक होती है फ़क़ीरों की हमेशा बोली
खून में फाग रचाएगी हमारी टोली
जब से बंगाल में खेले हैं कन्हैया होली
कोइ उस दिन से नहीं पूछता बरसाने को

अपना कुछ गम नहीं पर हमको ख़याल आता है
मादार-ए-हिंद पर कब तक ज्वाल आता है
‘हरदयाल’ आता है ‘युरोप’ से ना ‘लाल’ आता है
देश के हाल पे रह रह मलाल आता है
मुंतज़ीर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को

नौजवानों, जो तबीयत में तुम्हारी ख़टके
याद कर लेना हमें भी कभी भूल-ए-भटके
आप के ज़ुज़वे बदन होये जुदा कट-कटके
और साद चाक हो माता का कलेजा फटके
पर ना माथे पे शिकन आए क़सम खाने को

देखें कब तक ये असीरा-ए-मुसीबत छूटें
मादार-ए-हिंद के कब भाग खुलें या फुटें
‘गाँधी अफ्रीका की बाज़ारों में सदके कूटें
और हम चैन से दिन रात बहारें लुटें
क्यूँ ना तरज़ीह दें इस जीने पे मार जाने को

कोई माता की ऊंमीदों पे ना ड़ाले पानी
जिन्दगी भर को हमें भेज के काला पानी
मुँह में जल्लाद हुए जाते हैं छले पानी
अब के खंजर का पिला करके दुआ ले पानी
भरने क्यों जाये कहीं ऊमर के पैमाने को

मयकदा किसका है ये जाम-ए-सुबु किसका है
वार किसका है जवानों ये गुलु किसका है
जो बहे कौम के खातिर वो लहु किसका है
आसमां साफ बता दे तु अदु किसका है
क्यों नये रंग बदलता है तु तड़पाने को

दर्दमंदों से मुसीबत की हलावत पुछो
मरने वालों से जरा लुत्फ-ए-शहादत पुछो
चश्म-ऐ-खुश्ताख से कुछ दीद की हसरत पुछो
कुश्त-ए-नाज से ठोकर की कयामत पुछो
सोज कहते हैं किसे पुछ लो परवाने को

नौजवानों यही मौका है उठो खुल खेलो
और सर पर जो बला आये खुशी से झेलो
कौंम के नाम पे सदके पे जवानी दे दो
फिर मिलेगी ना ये माता की दुआएं ले लो
देखे कौन आता है ईर्शाथ बजा लाने को

16 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना|

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  2. इस प्रस्तुति के लिए शुक्रिया.

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  3. आप सबको विजयादशमी पर्व की मंगल कामनाएँ .सत्य की जय हो,धर्म की जय हो,ईश्वर की जय हो.हमारे ह्रदय में मानवता का वास हो ,देश ,संस्कृति ,बुज़ुर्ग,के प्रति नेह रहे . परोपकार की भावना उम्र तक साथ रहे .हम सदाचारी बनें.



    "ज़ुल्म कितना ही सबल हो,तम हो कितना ही प्रबल
    झूट,फरेब,मक्कारियों के,चाहे संघठित कितने ही दल,
    जाल कितना ही महीन चाहे,मिलकर बुने कुसंगतियाँ,
    और चाल कैसी भी चले, हो एकजुट दुश्प्रव्रतियाँ
    पर सत्य की जब एक किरण,सिर अपना कहीं उठाती है
    चीर कर सीना तिमिर का,“दीपक” दीप्ति मुस्कुराती हैं
    दीप्ति मुस्कुराती हैं

    दीप्ति मुस्कुराती हैं

    दीप्ति मुस्कुराती हैं

    @कवि दीपक शर्मा



    Kavi Deepak Sharma
    http://www.kavideepaksharma.com
    http://shayardeepaksharma.blogspot.com
    http://kavideepaksharma.blogspot.com
    http://kavyadhara-team.blogspot.com

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  4. @ Amit and Patali ब्लॉग पे आने के लिए और आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद

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  5. @Deepak Sharma आपकी रचना बहुत अच्छी है.

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  6. @ Umra Quaidi
    लेखन की शुभकामनाओं का मैं हकदार नहीं हूँ. उसपर सिर्फ़ बिस्मिल साहब का हक है. आपका ब्लॉग तो काफ़ी लोकप्रिय है और आपके लेखन में बहुत ज़ोर है. यदि आप इसे और लोकप्रिय बनाना चाहते हैं तो आप अपने लेखों को www.indiblogger.com पर प्रकाशित कर सकते हैं. इससे आपकी काफ़ी नये पाठक मिलेंगे

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  7. @ Surendra
    आपकी प्रशंसा का मैं कतई हकदार नहीं हूँ. इस ब्लॉग में मेरा कोई लेखन नहीं है. प्रशंसा के हकदार सिर्फ़ यह महान कवि और शायर हैं. शीघ्र ही ब्लॉग तो आपके अग्रिगेटर पर जोड़ दूँगा

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  8. हिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है..ऐसी ही सुन्दर पोस्टों से हिन्दी ब्लॉग को समृद्ध करते रहिये.. नवरात्र और दशहरे की शुभकामनाएं..

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  9. अच्छी जानकारी ! बिजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  10. दीपक भाई बहुत धन्यवाद. आपका लेखन तो बहुत ज़बरदस्त है और मैं आपके ब्लॉग पर काफ़ी बार जा चुका हूँ. बस यही कोशिश है की इस ब्लॉग के ज़रिए हिन्दी भाषा के लिए थोड़ा योगदान दे सकूँ

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  11. अजय साहब बहुत धन्यवाद. जल्दी ही आपके और अन्य हिन्दी ब्लॉगों पर जाकर कॉमेंट करूँगा

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  12. @ Yogendranath बहुत धन्यवाद

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  13. संगीता जी धन्यवाद. लेखन तो नहीं है. सिर्फ़ संग्रह कर रहा हूँ

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