हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सॉंसों की डोरी।
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालों।
bahut sundar rachana.......
ReplyDelete@ Ana - ब्लॉग पर आपका स्वागत है और टिप्पणी के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteman bhavak kavita
ReplyDeleteawesome based on independence
ReplyDeleteati sundar ati manbhawan
ReplyDeletemann ko chhu lene wali kavita
ReplyDeletewah wah
ReplyDeletewah wah
ReplyDeleteइस कविता का भाषांतर आप को निम्नलिखित लिंक पर लब्ध होगा। आशा है आप को पसंद आये।
ReplyDeletehttp://cpravikumar-hindi.blogspot.in/2013/05/we-are-birds-of-open-skies.html
bahut achhi kavita hai.hamare school mei hamere books me bhi yahi kavita likhi hui hai.hamari mam ne hume task diya hai ki hame iss poori poem ko yaad karke lana hai
ReplyDeleteBhaut sunder shabdo m khi h hum punchi unmuket gag an k@
ReplyDeletemaine ye poem school me yaad kiya tha...mujhe bahut acchi lagti hai.
ReplyDeleteSabdo ke khel me badi baat.salaam
ReplyDeleteAwesome love it! !!
ReplyDeleteMaine bhi yaad ki Hai ...mujhe bahot pasand Hai : Ayushi
ReplyDeleteMujhe bhi yae kavita bahot pasand hai... manmohak Rachna Hai....: Apki Ayushi
ReplyDeletewah mza aa gya
ReplyDeletemene yeh parh rakhi hai
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteACHA KAVITHA HAI
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