Wednesday, October 20, 2010

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले (Hazaaron Khwaishein Aisi Ki Har Khwaish Pe Dam Nikle) - मिर्जा गालिब (Mirza Ghalib)

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले

डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले

निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले

मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले

हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले

हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले

मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले

जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले

खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले

कहाँ मयखाने का दरवाजा 'गालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले

4 comments:

  1. Bilasubah yah mirza galib ki shresthh rachnaaon men se ek hai.lekin aanand ji aapka chayan bahut sundar hai.mujhe aap par garv hai.aap hindi ki apratim seva karte huye raastrvaad ka alakh jaga rahe hain.

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  2. राकेश जी बहुत धन्यवाद. अपने से कुछ लिखने की तो काबिलियत नहीं है. बस संग्रह करके कुछ योगदान करने का प्रयास कर रहा हूँ. आपके प्रोत्साहन से बहुत बल मिलेगा

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  3. इधर उधर बिखरे हुए चयनित साहित्‍य को संग्रहित करके लोगों तक इस विधा के उपयोग से पहुंचानी भी एक कला है, एक जरूरत है और एक दुष्‍कर कार्य है....जो आप बखूबी निभा रहे हो।

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  4. @CG स्वर - धन्यवाद. मैने आपका पॉड कास्ट ब्लॉग देखा. बहुत अच्छा है. मुझे भी पॉड कास्ट में बहुत रूचि है.

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