मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।
मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे,
ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी।
जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।
awesome poem with awesome values salute to अयोध्या सिंह उपाध्याय
ReplyDeletegreat poem
ReplyDeleteplease explain the meaning of this poem, for a student of class 6. This is on urgent basis. Thank you. Reply ASAP
ReplyDelete@Devika Sharma...I am very sorry but I don't know the full meaning of this poem. Let me ask some people if they can help with this.
ReplyDelete