फिर कोई आया दिल-ए-ज़ार,नहीं कोई नहीं
राहरव होगा, कहीं और चला जाएगा
ढल चुकी रात, बिखरने लगा तारों का गुबार
लड़खडाने लगे एवानों में ख्वाबीदा चिराग़
सो गई रास्ता तक तक के हर एक रहगुज़र
अजनबी ख़ाक ने धुंधला दिए कदमों के सुराग़
गुल करो शम'एं, बढ़ाओ मय-ओ-मीना-ओ-अयाग़
अपने बेख़्वाब किवाडों को मुकफ़्फ़ल कर लो
अब यहाँ कोई नहीं , कोई नहीं आएगा...
शब्दार्थ
दिल-ए-ज़ार = व्याकुलदिल
राहरव = पथिक
एवानों = महलों
मय-ओ-मीना-ओ-अयाग़ = मदिरा और सुरापात्र उठा लो
मुकफ़्फ़ल = ताले लगा दो
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